क्या है ग्लोबल हंगर इंडेक्स, मोदी सरकार ने क्यों किया इसे खारिज?
<p style="text-align: justify;"><strong>Global Hunger Index: </strong>ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) यानी भूख नापने का पैमाना. आज से 3 दिन पहले 15 अक्टूबर को जीएचआई 2022 में कहा गया है कि भूख के मामले में भारत की हालात काफी खराब हैं. लेकिन भारत सरकार ने इसे खारिज कर दिया है. महिला और बाल विकास मंत्रालय ने इस रिपोर्ट को सिरे से नकार दिया है.</p> <p style="text-align: justify;">सालाना इस रिपोर्ट को जारी करने वाली आयरलैंड और जर्मनी की गैर-सरकारी संस्था कंसर्न वर्ल्ड वाइड एंड वेल्ट हंगर हिल्फ ने साल 2022 में भारत को 121 देशों में 107वां स्थान दिया है. आलम ये रहा कि भयंकर आर्थिक संकट से जूझ रहा पड़ोसी देश श्रीलंका भी इस मामले भारत को मात दे गया है. यहां भूख की इस कहानी में जीएचआई के रोल के बारे में जानने के साथ ही भारत की इसे लेकर नाराजगी के पहलुओं को भी समझने की कोशिश करेंगे.</p> <p style="text-align: justify;"><strong>अब तक की ये है कहानी</strong></p> <p style="text-align: justify;">ये दो साल में दूसरी बार है जब महिला और बाल विकास मंत्रालय ने शनिवार 15 अक्टूबर को ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) को नकार दिया है. इसमें 121 देशों में भारत को 107वें पायदान पर रखा गया है. इस इंडेक्स में भारत को श्रीलंका (66), म्यांमार (71), नेपाल (81) और बांग्लादेश (84) से पीछे रखते हुए, 100 में से 29.1 <span style="font-weight: 400;">(0 का मतलब भूख नहीं)</span> का स्कोर दिया गया है.</p> <p style="text-align: justify;">मंत्रालय का कहना है कि वैश्विक भूख का हिसाब लगाने के लिए केवल बच्चों पर केंद्रित माप (मैट्रिक्स) का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. मंत्रालय ने इसे भूख मापने का गलत तरीका कहा है. जीएचआई 2022 को लेकर मंत्रालय की तरफ ये भी कहा गया है कि इसमें भूख का हिसाब लगाने के जिन 4 तरीकों का इस्तेमाल किया गया है, उसमें से 3 केवल बच्चों की सेहत पर आधारित है.</p> <p style="text-align: justify;">भारत का कहना है कि भूख का हिसाब लगाने में कुल आबादी के कुपोषण का अनुपात (PoU) चौथा और सबसे अहम तरीका है, लेकिन इसे ही जीएचआई में अनदेखा किया गया है. इसमें गलत तरीके से दावा किया कि इंडेक्स एक जनमत सर्वेक्षण पर निर्भर है. जबकि इसमें महज 8 सवालों के 3000 लोगों के जवाब के छोटे से नमूने को इसका आधार बनाया गया है.</p> <p style="text-align: justify;"><br /><img src="https://ift.tt/ps1NyzU" /></p> <p style="text-align: justify;">महिला और बाल विकास मंत्रालय के मुताबिक गैलप वर्ल्ड पोल का किया ये सर्वे मॉड्यूल खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के खाद्य असुरक्षा अनुभव पैमाने (FIES) पर और पूर्वाग्रहों से ग्रस्त है. इस तरह से देखा जाए तो भूख का हिसाब लगाने का ये तरीका सही नहीं है, क्योंकि इसमें पूरी आबादी शामिल नहीं की गई है.</p> <p style="text-align: justify;">मंत्रालय ने कहा है कि इससे वैश्विक स्तर पर भारत की छवि को लगातार बिगाड़ने की कोशिश की जा रही है. इसमें देश में भूख को एक मुसीबत के तौर पर पेश किया गया है. जीएचआई 2022 की ये रिपोर्ट साफ तौर पर ये कह रही है कि भारत अपनी आबादी की खाने-पीने और भरण-पोषण की जरूरतों को पूरा करने की कुव्वत नहीं रखता है.</p> <p style="text-align: justify;">मंत्रालय का कहना है कि इस रिपोर्ट में भारत की कोविड महामारी के दौरान अपने नागरिकों को मुहैया कराई गई खाद्य सुरक्षा को भी सिरे से नकार दिया गया है. आखिर क्या पैमाने होते हैं जिसके आधार पर जीएचआई का हिसाब लगाया जाता है और क्यों महिला व बाल विकास मंत्रालय ने इस रिपोर्ट को खारिज कर डाला है. इसके लिए जीएचआई और उसको मापने के तरीकों को समझना भी जरूरी है. </p> <p style="text-align: justify;"><strong>जीएचआई जिस पर मचा बवाल</strong></p> <p style="text-align: justify;">सरल शब्दों में कहा जाए तो ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) वैश्विक, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय सीमाओं में भूख का हिसाब लगाने उस पर निगरानी रखने का एक तरीका है. रिपोर्ट बनाने वाले लोग <span style="font-weight: 400;">खासतौर से संयुक्त राष्ट्र (United Nations) के सतत विकास लक्ष्य-एसडीजी 2( Sustainable Development Goal 2) के बारे में बात करते हैं जो 2030 तक भूख को दुनिया से पूरी तरह खत्म करने की कोशिश है.</span></p> <p style="text-align: justify;"><span style="font-weight: 400;"> इस रिपोर्ट का मकसद मकसद भूख के खिलाफ संघर्ष को लेकर जागरूकता और समझ बढ़ाने की कोशिश करना है. पहली बार जीएचआई 2006 में जारी की गई थी. साल 2022 जीएचआई का </span><span style="font-weight: 400;">17 वां संस्करण है. </span></p> <p style="text-align: justify;">इसकी रैंकिंग कुल स्कोर के आधार पर दी जाती है जो 100 प्वाइंट होता है. इससे दुनिया के देशों में भूख के गंभीर हालातों का हिसाब लगाया जाता है. इस स्कोर को नापने के लिए खासकर 4 पैमाने निर्धारित किए गए हैं.</p> <p style="text-align: justify;">इनमें कुपोषण, बच्चों के विकास में रोक, बच्चों की मृत्यु दर और नवजात बच्चों में होने वाले खतरनाक कुपोषण को शामिल किया गया है. उदाहरण के लिए जीएचआई के स्कोर में अगर कोई देश जीरो स्कोर करता है तो उससे पता चलता है कि वहां भूख के मामले में हालात काबू में हैं. उधर दूसरी तरफ 100 स्कोर वाले देशों को भूख के मामले में खस्ताहाल वाले हालातों में रखा जाता है.</p> <p style="text-align: justify;">भारत का साल 2022 का स्कोर देखा जाए तो ये 29.1 वाली श्रेणी में है. इस आधार पर कहा जा सकता है कि भारत में लोगों के भूखे रहने की संख्या बेहद अधिक है. यहां भूख को लेकर हालात संजीदा कहे जा सकते हैं. कंसर्न वर्ल्ड वाइड एंड वेल्ट हंगर हिल्फ की जीएचआई 2022 में केवल 17 देश ऐसे हैं जो 5 से कम स्कोर रखते हैं.</p> <p style="text-align: justify;">इस श्रेणी में चिली, उरुग्वे, तुर्की, कुवैत, बेलारूस और चीन जैसे देश हैं. जीएचआई के एक वरिष्ठ नीति अधिकारी लौरा रेनर के मुताबिक, "वैश्विक भूख की हिसाब लगाने के सभी चार पैमानों को भारत सहित अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मान्यता मिली हुई है और संयुक्त राष्ट्र की एसडीजी की दिशा में प्रगति को मापने के लिए इस्तेमाल में लाए जाते हैं."</p> <p style="text-align: justify;"><strong>जीएचआई के पैमानों पर खरा नहीं उतरा भारत</strong></p> <p style="text-align: justify;">भारत जीएचआई 2022 के 4 पैमानों पर खरा नहीं उतरा है. बच्चों के खतरनाक कुपोषण में भारत साल 2014 के 15.1 फीसदी के मुकाबले साल 2022 में 19.3 फीसदी पर जा पहुंचा है. इसमें 9 साल में लगभग 4 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. कुल कुपोषण के मामले में भी जीएचआई में भारत का रिकॉर्ड अच्छा नहीं है. इस साल की इंडेक्स में 2018 -20 के कुल कुपोषण की तुलना 2019-21 से की जाए तो ये इसमें भी दो फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है.</p> <p style="text-align: justify;">2018 -20 में कुल कुपोषण 14.6 फ़ीसदी था तो 2019-21 में ये 16.3 फीसदी रहा. इस तरह से देखा जाए तो दुनिया में कुपोषण झेल रही 82.8 करोड़ की आबादी में से 22.4 करोड़ की भारत में है. इस इंडेक्स में दो पैमानों पर भारत के लिए राहत भरी खबर है. ये बच्चों के विकास में रुकावट और मृत्यु दर हैं. साल 2014 में बच्चों के विकास में रुकावट 38.7 फीसदी रही थी जो साल 2022 में घटकर 35.5 फीसदी रह गई है. उधर बच्चों की मृत्यु दर साल 2014 के 4.6 फीसदी के मुकाबले 3.3 फीसदी जा पहुंची है.</p> <p style="text-align: justify;">भारत के लिए साल 2022 की जीएचआई परेशानी की वजह इसलिए है क्योंकि इसके कुल स्कोर में भारत अपने पड़ोसी देशों से भी काफी पीछे रह गया है. साल 2014 में जीएचआई में भारत का कुल स्कोर 28.2 रहा था और साल 2022 में ये बढ़कर 29.1 जा पहुंचा है.</p> <p style="text-align: justify;"><strong>ये भी पढ़ेंः</strong></p> <p style="text-align: justify;"><strong><a title="सेक्शन 66ए आईटी एक्ट में अब नहीं दर्ज होगा केस, आपको भी इसके बारे में जानकारी होना है जरूरी" href="https://ift.tt/m6tOZCh" target="_self">सेक्शन 66ए आईटी एक्ट में अब नहीं दर्ज होगा केस, आपको भी इसके बारे में जानकारी होना है जरूरी</a></strong></p> TAG : imdia news,news of india,latest indian news,india breaking news,india,latest 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