राजनीति पार्टियों को इलेक्टोरल बॉन्ड से वित्तीय मदद दी जाए या नहीं? सुप्रीम कोर्ट करेगा जांच, बड़ी बेंच को केस सौंपे जाने की उठी है मांग
<p style="text-align: justify;"><strong>Electoral Bond:</strong> देश में राजनीतिक पार्टियों (Political Parties) को इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bond) के जरिये वित्तीय मदद दी जाए या नहीं, सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) इसे लेकर जांच करेगा. सुप्रीम कोर्ट 6 दिसंबर को जांच करने के बाद इस बारे में फैसला लेगा कि मामले को बड़ी बेंच (Larger Bench) को सौंपा जाए या नहीं. कोर्ट में दायर जनहित याचिका (PIL) में मामले को बड़ी बेंच को सौंपे जाने की मांग की गई है.</p> <p style="text-align: justify;">समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, न्यायमूर्ति बीआर गवई (Justices B R Gavai) और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना (BV Nagarathna) की पीठ ने शुक्रवार (14 अक्टूबर) को कहा कि यह एक महत्वपूर्ण मामला है और इस मामले में अटॉर्नी जनरल (Attorney General) और सॉलिसिटर जनरल (Solicitor General ) से सहायता मांगी. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (Solicitor General Tushar Mehta) ने पीठ के समक्ष कहा कि चुनावी बॉन्ड के जरिये धन प्राप्त करने की कार्यप्रणाली बहुत पारदर्शी है. राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता लाने की कोशिशों के तहत पार्टियों को दिए गए नकद चंदे के विकल्प के रूप में चुनावी बॉन्ड पेश किए जाते हैं.</p> <p style="text-align: justify;"><strong>किसने दायर की हैं जनहित याचिकाएं?</strong></p> <p style="text-align: justify;">शीर्ष अदालत एक एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और अन्य याचिकाकर्ताओं की जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. एनजीओ की ओर से पेश हुए अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने 5 अप्रैल को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण के समक्ष मामले को लेकर कहा था कि यह मुद्दा गंभीर है और इस पर तत्काल सुनवाई की आवश्यकता है. सुप्रीम कोर्ट ने एनजीओ की याचिका को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर सहमति जताई थी लेकिन यह किसी कोर्ट के सामने नहीं सकी थी.</p> <p style="text-align: justify;"><strong>अधिवक्ता प्रशांत भूषण की दलील</strong></p> <p style="text-align: justify;">अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने पिछले साल 4 अक्टूबर को राजनीतिक पार्टियों के खातों में पारदर्शिता की कमी का आरोप लगाते हुए शीर्ष अदालत से जनहित याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने की मांग की थी. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से मांग की थी कि राजनीतिक दलों के वित्त पोषण से संबंधित एक मामले के लंबित रहने के दौरान चुनावी बॉन्ड की बिक्री के लिए कोई और खिड़की नहीं खोलने के लिए केंद्र को निर्देश दिया जाए.</p> <p style="text-align: justify;">2017 में एनजीओ ने राजनीतिक दलों पर अवैध और विदेशी फंड इकट्ठा करने और उनके खातों में पारदर्शिता की कमी का आरोप लगाते हुए याचिका दायर की थी. एनजीओ ने पार्टियों पर भ्रष्टाचार और लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया था. एनजीओ ने इसी साल मार्च में पश्चिम बंगाल और असम में विधानसभा चुनाव से पहले एक अंतरिम आवेदन दायर किया था जिसमें चुनावी बॉन्ड की बिक्री के लिए खिड़की को फिर से नहीं खोलने की मांग की गई थी.</p> <p style="text-align: justify;"><strong>एनजीओ ने दायर कर दिया था नया आवेदन</strong></p> <p style="text-align: justify;">एनजीओ ने अपनी याचिका के लंबित रहने के दौरान नए आवेदन में दावा किया था कि इस बात की गंभीर आशंका है कि पश्चिम बंगाल और असम सहित आगामी विधानसभा चुनावों से पहले चुनावी बॉन्ड की किसी भी तरह की बिक्री से दिखावटी कंपनियों के माध्यम से राजनीतिक दलों के अवैध धन में और इजाफा होगा.</p> <p style="text-align: justify;">पिछले साल 20 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने 2018 की चुनावी बॉन्ड योजना पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया था और योजना पर रोक की मांग करने वाले एनजीओ के अंतरिम आवेदन पर केंद्र और चुनाव आयोग से जवाब मांगा था. केंद्र सरकार ने 2 जनवरी 2018 को चुनावी बॉन्ड योजना को अधिसूचित किया था.</p> <p style="text-align: justify;"><strong>क्या है चुनावी बॉन्ड योजना?</strong></p> <p style="text-align: justify;">योजना के प्रावधानों के अनुसार, वह व्यक्ति चुनावी बॉन्ड खरीद सकता है जो भारत का नागरिक हो या भारत में निगमित या स्थापित हो. एक व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से भी चुनावी बॉन्ड खरीद सकता है. केवल वे राजनीतिक दल चुनावी बॉन्ड प्राप्त करने के पात्र हैं जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत हैं और जिन्होंने पिछले आम चुनाव या राज्य की विधानसभा के मतदान में कम से कम एक प्रतिशत मत प्राप्त किए हैं. अधिसूचना के अनुसार, पात्र राजनीतिक पार्टी अधिकृत बैंक के खाते के माध्यम से चुनावी बॉन्ड को भुना सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2019 में केंद्र की चुनावी बॉन्ड योजना 2018 पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा था कि वह याचिकाओं पर गहन सुनवाई करेगी.</p> <p style="text-align: justify;">केंद्र और चुनाव आयोग ने पहले राजनीतिक चंदे को लेकर अदालत में विपरीत रुख अपनाया था. सरकार बॉन्ड के दाताओं की गुमनामी बनाए रखना चाहती थी और पोल पैनल पारदर्शिता बनाए रखने के लिए दानदाताओं के नामों का खुलासा करने के पक्ष में था.</p> <p style="text-align: justify;"><strong>ये भी पढ़ें</strong></p> <p style="text-align: justify;"><strong><a title="Gyanvapi Masjid Case: ज्ञानवापी मामले में वाराणसी कोर्ट का फैसला, कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग कराने की मांग खारिज" href="https://ift.tt/9DpcqX4" target="_blank" rel="noopener">Gyanvapi Masjid Case: ज्ञानवापी मामले में वाराणसी कोर्ट का फैसला, कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग कराने की मांग खारिज</a></strong></p> TAG : imdia news,news of india,latest indian news,india breaking news,india,latest news,recent news,breaking news,news SOURCE : https://ift.tt/ONGkaj3
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