हिमाचल प्रदेश: जब अपने ही वोट से सीएम बने थे शांता कुमार, कहानी 1977 के विधानसभा चुनाव की
<p style="text-align: justify;"><strong>Himachal Pradesh Assembly Election 2022: </strong>हिमाचल के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बनने का खिताब शांता कुमार के नाम है. इस सूबे में कुमार बीजेपी के खासे कद्दावार नेता के तौर पर जाने जाते हैं. उन्होंने सियासत को भले ही अलविदा कह दिया हो, लेकिन अभी भी यहां उनका दबदबा कायम है. उन्हें सूबे की जनता को बेहतरीन तरीके से समझने वाले नेता के तौर पर माना जाता है. ये पहली बार है कि बीजेपी विधानसभा चुनावों में इस दिग्गज नेता के बगैर उतरने जा रही है. भले ही शांता कुमार इन चुनावों में शिरकत न कर रहे हों, लेकिन सियासत के इतिहास में अपने खुद के वोट से ही सीएम बनने वाले नेता के तौर पर उनकी अनोखी पहचान हमेशा कायम रहेगी. </p> <p style="text-align: justify;"><strong>इमरजेंसी के बाद का यादगार चुनाव</strong></p> <p style="text-align: justify;">इंदिरा गांधी सरकार ने 25 जून 1975 को देश में आपातकाल लागू किया था. 21 महीने तक लगे इस आपातकाल को 21 मार्च 1977 को खत्म किया गया था. इसके बाद हिमाचल में विधानसभा का चौथा चुनाव हुआ. कई मायनों में साल 1977 का ये विधानसभा चुनाव खास बन गया. इस चुनाव में सूबे में बीजेपी ने बढ़त बनाई थी और शांता कुमार मुख्यमंत्री बने थे. बीजेपी के दिग्गज नेता कुमार के सीएम पद तक पहुंचने का वाकया काफी रोचक है.</p> <p style="text-align: justify;">इस सूबे में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार आई थी और तब खुद के अपने एक वोट की बदौलत शांता कुमार ने सीएम बनकर इतिहास रचा था. सीएम पद के लिए शांता कुमार का मुकाबला हमीरपुर के लोकसभा सदस्य ठाकुर रणजीत सिंह से था. कांग्रेस पूरी धमक के साथ 56 सीटों पर उतरी थी, लेकिन बीजेपी का ऐसा असर रहा कि उसे तब 9 ही सीटों पर जीत हासिल हो पाई थी.</p> <p style="text-align: justify;">बीजेपी के साथ मिलकर सूबे के कई छोटे-छोटे राजनीतिक दलों ने ये चुनाव लड़ा. चुनाव आयोग में इन छोटे दलों का रजिस्ट्रेशन नहीं था, लेकिन बीजेपी की छत्रछाया में इन्हें भी इन चुनावों का फायदा मिला. बीजेपी पूरे दमखम के साथ सूबे की सभी 68 सीटों पर मुकाबले के लिए उतरी थी. तब बीजेपी ने 53 सीटों पर जीत हासिल की तो 6 निर्दलीय विधायक उसके समर्थन में आ गए. फिर क्या था सूबे में बीजेपी की सरकार आसानी से बन गई. </p> <p style="text-align: justify;"><strong>असहमति के बीच काम आया खुद का वोट</strong></p> <p style="text-align: justify;">साल 1977 के विधानसभा चुनावों में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने उतरी बीजेपी के सामने भी इस दौरान एक चुनौती पेश आई. उसके सामने विधायक दल का नेता चुनने के लिए हुई बैठक में दो गुटों की असहमति से पार पाने का सवाल उठा था. इस बैठक में एक गुट ने हिमाचल सीएम पद के सांसद रणजीत सिंह का नाम आगे किया तो दूसरे ने शांता कुमार के नाम का प्रस्ताव रखा. मसला तब पेश आया जब दोनों ही गुट अपनी बात से टस से मस नहीं हुए.</p> <p style="text-align: justify;">अब सीएम पद के लिए चुनाव के लिए वोटिंग ही इकलौता रास्ता बचा रह गया. यहां भी बात अटक गई क्योंकि शांता कुमार और रणजीत सिंह दोनों को ही बराबर 29 विधायकों का समर्थन मिला. इसमें शांता कुमार ने खुद का एक वोट डालकर बाजी मार ली. उन्होंने विधायक के तौर ये वोट दिया तो उनके वोटों की संख्या रणजीत सिंह के मुकाबले 30 पहुंच गई और वो सीएम बन गए. उनके प्रतिद्वंद्वी ठाकुर रणजीत सिंह हमीरपुर संसदीय क्षेत्र से सांसद थे इस वजह से उनका खुद का वोट नहीं था.</p> <p style="text-align: justify;"><strong> ऊना के हाथ से निकला सीएम का मौका</strong></p> <p style="text-align: justify;">साल 1977 में ठाकुर रणजीत सिंह केवल एक वोट से हिमाचल प्रदेश के सीएम बनने से रह गए थे. उन्हें ये एक वोट मिलता तो ऊना जिले के नाम पहली बार सूबे के सीएम चुने जाने का खिताब होता. दरअसल ठाकुर रणजीत सिंह ऊना जिले के कुटलैहड़ हलके के रहने वाले हैं. इस जिले से आज तक हिमाचल के सीएम चुनकर नहीं आए हैं. रणजीत सिंह के सीएम बनने की राह में दो विधायकों ने रोड़े अटकाए थे.</p> <p style="text-align: justify;">इन दोनों ही ने उन्हें वोट नहीं दिया. इसकी वजह रही कि अगर सिंह सीएम बनते तो उन्हें 6 महीने के अंदर सांसद का पद छोड़ना पड़ता और उनके लिए विधानसभा चुनाव लड़ना जरूरी हो जाता. अपने राजनीतिक करियर को दांव पर लगते देख तब इन दो विधायकों ने तब शांता कुमार को वोट दिया था.</p> <p style="text-align: justify;"><strong>हिमाचल में विधानसभा सीटों का आंकड़ा</strong></p> <p><span style="font-weight: 400;">हिमाचल सदन का कार्यकाल 8 जनवरी, 2023 को खत्म होने जा रहा है. इसी के मद्देनजर चुनाव आयोग ने शुक्रवार (14 अक्टूबर) को हिमाचल प्रदेश विधान सभा चुनावों के शेड्यूल का एलान किया. इसके तहत 17 अक्टूबर को अधिसूचना जारी की जाएगी. नामांकन के लिए आखिरी तारीख 25 अक्टूबर रखी गई है, जबकि 29 अक्टूबर को नामांकन वापस ले सकते हैं. </span></p> <p><span style="font-weight: 400;">12 नवंबर को वोटिंग होगी. 8 दिसंबर को वोट्स की काउंटिंग होगी और चुनावों के नतीजों का एलान होगा. </span><span style="font-weight: 400;">हिमाचल प्रदेश में विधानसभा की 68 सीटें हैं. इनमें 17 सीटें एससी वर्ग और 3 सीटें एसटी वर्ग के लिए आरक्षित की गई हैं. सूबे में 55.07 लाख वोटर हैं. इन वोटर्स में 27 लाख 80 हजार पुरुष मतदाता है, जबकि 27 लाख 27 हजार महिला मतदाता हैं.</span></p> <p><strong>कैसा है मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य</strong></p> <p><span style="font-weight: 400;">हिमाचल प्रदेश में अभी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर वाली बीजेपी की सरकार है. गौरतलब है कि बीजेपी के दो बड़े चेहरे इस बार के चुनावों में नहीं है. शांता कुमार ने राजनीति को अलविदा कह दिया तो प्रेम कुमार धूमल पर पार्टी ने दांव नहीं लगाया है. ये दोनों अनुभवी नेता इस सूबे के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. यहां खासा प्रभाव रखने वाले कांग्रेसी नेता और 6 बार सीएम रह चुके वीरभद्र सिंह की मौत हो गई है.</span></p> <p><span style="font-weight: 400;"> पांच दशक में सूबे के सियासी इतिहास में ये पहला मौका है जब ये तीन असरदार चेहरे विधानसभा चुनावों में नहीं है. ऐसे में बीजेपी की सरकार के पास अपनी सत्ता को बरकरार रखने की चुनौती है तो कांग्रेस की कमान सूबे में दिवंगत वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह ने संभाल रखी है. आम आदमी पार्टी भी इस सूबे में अपनी सरकार बनाने की पुरजोर कोशिशों में है. </span></p> <p><span style="font-weight: 400;">बीजेपी हिमाचल में पहली बार शांता कुमार और प्रेम कुमार धूमल बगैर विधानसभा चुनाव में उतर रही है. इन बुजुर्ग कद्दावार नेता की जगह इस बार पार्टी ने युवा चेहरों को जगह दी है. इनमें </span><span style="font-weight: 400;">राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी की कमान संभालने वाले जेपी नड्डा हैं तो केंद्र में हिमाचल का नेतृत्व कर रहे अनुराग ठाकुर कर भी शामिल है. साल 2017 में प्रेम कुमार धूमल के अपनी सुजानपुर विधानसभा सीट से हार जाने पर सीएम बने जयराम ठाकुर भी पार्टी का चेहरा है, लेकिन </span><span style="font-weight: 400;">उपचुनाव में पार्टी की हार के बाद उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती खुद को साबित करने की होगी. </span></p> <p><strong style="text-align: justify;">ये भी पढ़ेंः</strong></p> <p style="text-align: justify;"><strong><a title="गोपालगंज उपचुनाव: राबड़ी देवी के भाई ही लालू यादव की पार्टी आरजेडी के लिए बन सकते हैं मुसीबत" href="https://ift.tt/vweJBXz" target="_self">गोपालगंज उपचुनाव: राबड़ी देवी के भाई ही लालू यादव की पार्टी आरजेडी के लिए बन सकते हैं मुसीबत</a></strong></p> TAG : imdia news,news of india,latest indian news,india breaking news,india,latest news,recent news,breaking news,news SOURCE : https://ift.tt/Jixvf25
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