<p style="text-align: justify;"><strong>Harjinder Kaur Journey:</strong> कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 (Commonwealth Games 2022) में हरजिंदर कौर (Harjinder Kaur) ने भारत के लिए मेडल जीता. उन्होंने यह मेडल वेटलिफ्टिंग में जीता. अब मेडल जीतने के बाद उन्होंने अपनी कामयाबी का राज बताया है. दरअसल, वह कहती हैं कि वह चारे को काटने का काम करती थी, इस तरह भुजाएं मजबूत होती चली गई. यह टोका के नाम से जाना जाने वाला कठिन श्रम था, एक भूसा काटने की मशीन जिसके लिए ऑपरेटर को ब्लेड के साथ एक विशाल पहिया को चालू करना होता है.</p> <p style="text-align: justify;"><strong>पॉकेट मनी के तौर पर मिलते थे 350 रूपए</strong></p> <p style="text-align: justify;">गौरतलब है कि <a title="कॉमनवेल्थ गेम्स" href="
https://ift.tt/Mx8eP5Y" data-type="interlinkingkeywords">कॉमनवेल्थ गेम्स</a> 2022 में हरजिंदर कौर ने 71 किग्रा वर्ग में कांस्य पदक अपने नाम किया. उन्होंने इंग्लैंड की सारा डेविस और कनाडाई एलेक्सिस एशवर्थ को पीछे छोड़ते हुए कुल 212 किलोग्राम भार उठाया और कांस्य पदक जीता. हरजिंदर कौर का संघर्ष किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. दरअसल, उनका परिवार एक कमरे के घर में रहता था, उनके पास छह भैंसें थीं और वे अनुबंधित खेत पर काम करते थे. वह कहती हैं कि नाभा के पास मेहस गांव में जीवन कठिन था. पंजाब के भीतरी इलाकों में लोकप्रिय खेल कबड्डी उनका पहला प्यार था, लेकिन पहले कबड्डी फिर रस्साकशी और बाद में भारोत्तोलन ने उसे अपने परिवार की स्थिति सुधारने में मदद की. हरजिंदर कौर कहती हैं कि मेरे पिता मुझे नाभा से श्री आनंदपुर साहिब में कॉलेज के छात्रावास में वापसी के किराए के लिए 350 रुपये और पॉकेट मनी के रूप में 350 रुपये देते थे.</p> <p style="text-align: justify;"><strong>कोच परमजीत शर्मा ने हरजिंदर कौर के टैलेंट को पहचाना</strong></p> <p style="text-align: justify;">हरजिंदर कौर साहिब सिंह और कुलदीप कौर की सबसे छोटी संतान हैं. दरअसल, जब उन्होंने कॉलेज में एडमिशन लिया तो कोच सुरिंदर सिंह ने कॉलेज कबड्डी टीम के लिए उसे खेलने के लिए मनाया. वहीं, तकरीबन 1 साल बाद हरजिंदर कौर पंजाब यूनिवर्सिटी, पटियाला में स्पोर्ट्स विंग में शामिल हो गईं, जहां कोच परमजीत शर्मा ने उनकी प्रतिभा को पहचाना. कोच परमजीत शर्मा कहते हैं कि मुझे आश्चर्य हुआ कि एक किशोरी के रूप में उसके पास कितनी शक्ति थी. हालांकि, कई बार वह अपने गांव लौट जाती थी और भारोत्तोलन में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाती थी, लेकिन उन्होंने वक्त के साथ खुद को बदला.</p> <p style="text-align: justify;"><strong>ये भी पढ़ें-</strong></p> <p style="text-align: justify;"><strong><a href="
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