
<p><strong>Health Insurance claim:</strong> कोरोना महामारी की आमद के बाद लोगों में हेल्थ इंश्योरेंस को लेकर जागरुकता बढ़ी है. देश और दुनिया में हेल्थ इंश्योरेंस की खरीदारी में बढ़ोतरी देखी गई है. हालांकि हाल के कई सालों में बीमा कंपनियों ने काफी क्लेम रिजेक्ट किए हैं जो इस बात की चिंता बढ़ाते हैं कि क्या हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी लेने के बाद भी इसका फायदा नहीं मिल पाएगा. लेकिन आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है क्योंकि यहां हम बताएंगे कि कैसे आप हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम रिजेक्ट होने के खतरे से बच सकते हैं.</p> <p><strong>Co-morbidities को ना छुपाएं</strong><br />इंश्योरेंस में भी अगर कोई व्यक्ति महत्वपूर्ण तथ्य को छिपाता है, खासकर Co-morbidities को, तो क्लेम लेने में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. co-morbidities के कारण कोरोना का असर बहुत ज्यादा घातक हो जाता है. इसलिए कंपनियां पहले से ही यह तय कर लेती है कि इंश्योरेंस कराने वाले व्यक्तियों में co-morbidities है या नहीं. कंपनियों पॉलिसी होल्डर द्वारा फॉर्म में भरी गई बातों पर भरोसा करती है. अगर इस भरोसे को तोड़ा जाए तो क्लेम के वक्त कई दिक्कतें आ सकती है. </p> <p><strong>क्या होती है pre-existing diseases (PED) और क्यों इनकी जानकारी देना है जरूरी</strong><br />इंश्योरेंस रेग्युलेटर IRDAI ने pre-existing diseases या पहले की बीमारी को इस प्रकार परिभाषित किया है. इसके मुताबिक इंश्योरेंस कराने के वक्त से 48 महीने पहले अगर किसी व्यक्ति को किसी तरह की बीमारी या दुर्घटना का शिकार होना पड़ा है जिसमें उसने डॉक्टर से इलाज कराया या उसका इलाज चल रहा है या डॉक्टर की सलाह की दरकार है तो ऐसी स्थिति को pre-existing diseases मानी जाएगी. आमतौर पर ऐसी बीमारी तभी कवर हो सकती है जब चार साल तक इसके लिए वेट किया जाए. प्रत्येक पॉलिसी में अलग-अलग नियम शर्तं होती हैं.</p> <p><strong>क्लेम रद्द होने का खतरा कैसे दूर करें</strong><br />स्वास्थ्य जांच पर खर्च करना आपके लिए दोहरा फायदेमंद हो सकता है. बीमा विशेषज्ञों का कहना है कि स्वास्थ्य जांच कराने के बाद आप बीमा खरीदते हैं तो कुछ बीमारियों की वजह से उसका प्रीमियम जरूर थोड़ा महंगा हो जाता है. लेकिन ऐसी पॉलिसी में क्लेम मिलना भी ज्यादा आसान हो जाता है. साथ ही संबंधित बीमारियों का कवर भी आसानी से मिल जाता है जो जिससे आपकी जेब हल्की होने से बच जाती है.</p> <p>ज्यादातर स्टैंडर्ड हेल्थ पॉलिसी में किसी भी तरह के इलाज के लिए 30 से 90 दिनों का वेटिंग पीरियड होता है, यानी इतनी अवधि के बाद ही किसी बीमारी पर क्लेम मिल सकता है. इसलिए ग्राहकों को पॉलिसी के बारे में जान लेना चाहिए कि कौनसी बीमारियां दायरे में हैं और कौन सी नहीं. एड्स, दांतों का इलाज, मनोरोग संबंधी विसंगति, लिंग परिवर्तन सर्जरी, कास्मेटिक सर्जरी, खुद को नुकसान पहुंचाने से लगी चोट जैसे मामले किसी भी स्टैंडर्ड हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी के दायरे में नहीं होते हैं. </p> <p><strong>ये भी पढ़ें</strong></p> <p><a href="
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